Akhil bhartiy bishnoi mahasbha yuva samvad:mahila evm purush

महिला शिक्षा: बिश्नोई महिला शिक्षा एवं युवा संवाद पर आधारित ब्लॉगAkhil bhartiy bishnoi mahasbha samvad mahila evm purush yuva

 

महिला शिक्षा का महत्व और बिश्नोई समाज की भूमिका

 

आज हम एक ऐसे विषय पर विचार कर रहे हैं जो किसी भी समाज की प्रगति का आधार है – महिला शिक्षा।

अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के महिला एवं युवा संवाद कार्यक्रम में यह विषय विशेष रूप से चर्चा में रहा।

बिश्नोई समाज, जो अपने पर्यावरण प्रेम और सामाजिक जागरूकता के लिए जाना जाता है, ने महिला शिक्षा और समाज में महिलाओं की भूमिका पर महत्वपूर्ण बातें रखी।

 

महिला शिक्षा: समाज की समृद्धि का आधार

 

डॉ भरत सारण 50 विलेजर्स ने बताया कि महिला शिक्षा केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं है; यह पूरे समाज को सशक्त और सक्षम बनाने की प्रक्रिया है।

एक शिक्षित महिला न केवल अपने परिवार, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करती है। जैसा कि अक्सर कहा जाता है:

डॉ भाखरा राम सारण ने कहा “एक महिला को शिक्षित करना, एक पूरी पीढ़ी को शिक्षित करना है।”

बीरबल जी पुनिया ने कहा कि महिला और पुरुष दोनों को बराबरी का दर्जा दिया जावे.

CA सत्येन्द्र जी ने कहा कि केवल नोकरी के लिए नहीं पढ़े बल्कि दूसरे रोजगार भी करे.

वक्ताओं की लम्बी सूची है जिसमें उन्होंने अपने अपने विचार व्यक्त किए.

जिला प्रधान जी ने बहुत ही अच्छी पहल की इसके लिए उन्हें साधुवाद दिया गया.

Education is important for man and woman.

राणाराम जी ने पढ़ने पर जोर दिया और उन्होंने विशेष कर घर पर आयोजन के समय किताब भेंट करने का निर्णय किया.

मोबाइल और पुस्तक दोनों हाथ में होनी चाहिए हमारी पहचान योग्यता और कौशल होना चाहिए.

डॉ भरत जी ने बताया कि आज के युग में ज्ञान की नहीं कौशल की जरूरत है जिनके हाथों में कौशल है तकनीक है जमाना उनका है ज्ञान से गूगल भरा पड़ा है विशेष तौर से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के समय तकनीक को हासिल करने के लिए मेहनत करनी होगी

बिश्नोई समाज और प्रगतिशील सोच

 

बिश्नोई समाज ने हमेशा महिलाओं को सशक्त करने का समर्थन किया है।

अमृता देवी बिश्नोई जैसी साहसी महिलाओं के उदाहरणों ने यह सिद्ध किया है कि एक शिक्षित और जागरूक महिला समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है।

कार्यक्रम में यह बात भी उठी कि बाल विवाह जैसी प्रथाओं को पूरी तरह से समाप्त करना चाहिए।

इसके अलावा, समाज को पारंपरिक रीति-रिवाजों, जैसे “टेबल प्रथा” (कपड़े देने-लेने की प्रथा), पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

 

युवाओं की भूमिका

 

बिश्नोई समाज के युवाओं को महिला शिक्षा के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। यह युवा वर्ग ही है जो समाज में नई सोच और जागरूकता ला सकता है।

 

युवाओं से अपेक्षाएं:

 

1. प्रोत्साहन: अपने आसपास की लड़कियों को पढ़ाई और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।

 

 

2. सहयोग: आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को शिक्षा के लिए मदद करें।

 

 

3. जागरूकता: शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण के बीच के संबंध को समझाएं और समझाएं।

 

4 अमृता देवी बालिका छात्रा वास को लेकर जगदीश सारण ने बताया कि महिला शिक्षा के लिए छात्रावास शुरू करे नहीं तो इसकी कोई उपयोगिता नहीं है।

5राणा रामजी ने बताया कि बहुत कुछ है बोलने के लिए ओर बोलने पर पाबंदी नहीं लगावे अर्थात समय में वक्ता को मत बांधों।

6कई युवा महिलाओं ने अपने मन की बाते कहीं ओर महिला को पैसे धन दौलत की जरूरत नहीं है। उनके लिए परिवार में मान सम्मान और जगह होनी चाहिए।

तो महिला आपके हर कदम पर साथ देगी।

उन्होंने ये बात भी कही कि शादी की उम्र को ज्यादा ही लंबे खींचा जा रहा है पहली बाल विवाह था अब नहीं है।

बाल विवाह से उपजे बेमेल रिश्ते आपस में संवाद से निपटने चाहिए।

Cuet के लिए काउंसलर से सलाह लें और एडमिशन की प्रक्रिया को जानें।

महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में हो।

टांग खिंचाई नही करें।

दूसरे समाज से हमें सीख लेने की आवश्यकता है।

तकनीक और जागरूकता का सही उपयोग

 

कार्यक्रम में यह भी चर्चा हुई कि युवाओं को मोबाइल और तकनीकी उपकरणों का सही और सीमित उपयोग करना चाहिए।

तकनीक का इस्तेमाल केवल ज्ञानवर्धन और सामाजिक सुधार के लिए होना चाहिए।

 

महिलाओं की संपत्ति और अधिकार

 

महिलाओं के अधिकारों पर भी जोर दिया गया। यह बताया गया कि एक बेटी, जो अपने परिवार की संपत्ति अपने भाइयों को छोड़कर ससुराल जाती है, ।

उसे भी अपने पिता की संपत्ति में समान अधिकार मिलना चाहिए। लेन-देन की पाबंदियों से मुक्त एक स्वाभाविक और समर्थ समाज का निर्माण आवश्यक है।

 

नवीन पीढ़ी को मौका देने की अपील

 

कार्यक्रम में यह मांग उठी कि पारंपरिक वक्ताओं के स्थान पर युवाओं को मंच पर आने और अपनी बात रखने का अवसर मिलना चाहिए। इससे नई सोच और कौशल उभरकर सामने आएंगे।

 

समाप्ति

 

महिला शिक्षा और युवा संवाद केवल विषय नहीं, बल्कि समाज को प्रगतिशील बनाने का एक आंदोलन है।

बिश्नोई समाज ने इसे दिशा देने का प्रयास किया है।

हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर बेटी शिक्षित हो, हर महिला सशक्त हो, और हर युवा समाज के लिए एक प्रेरणा बने।

 

“जहां नारी शिक्षित होगी, वहां समाज समृद्ध होगा।”

 

आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम अपनी बेटियों और बहनों को शिक्षित करने और समाज में

सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।

बाल विवाह एवं बेमेल रिश्तों पर विचार: सामाजिक प्रगति की ओर एक कदम

 

बिश्नोई समाज के महिला एवं युवा संवाद कार्यक्रम में बाल विवाह, बेमेल रिश्ते, और उनके समाज पर प्रभाव जैसे विषयों पर गंभीर चर्चा की गई।

वकील शैतान सिंह ने इस चर्चा में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया कि विवाह जैसी संस्था को केवल सामाजिक परंपराओं और रूढ़ियों पर आधारित नहीं होना चाहिए।

इसके बजाय, यह युवाओं की योग्यता, कौशल, अनुभव, रुचि, और परिवारों के बीच आपसी संबंधों के आधार पर तय होना चाहिए।

 

बाल विवाह और बेमेल रिश्तों का दुष्प्रभाव

 

बाल विवाह और बेमेल रिश्ते न केवल व्यक्ति की स्वतंत्रता और पसंद पर असर डालते हैं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालते हैं।

यह भी कहा गया कि युवाओं पर जबरन विवाह या असंगत रिश्ते थोपना, न केवल उन्हें अपमानित करता है बल्कि उनके जीवन और करियर को भी प्रभावित करता है।

 

विवाह के लिए आपसी सहमति का महत्व

 

चर्चा में यह बात रखी गई कि विवाह का बंधन तभी सफल हो सकता है जब इसमें लड़के और लड़की की आपसी सहमति हो।

 

विवाह तय करने के लिए आवश्यक तत्व:

 

1. योग्यता और कौशल: दोनों पक्षों को उनकी शिक्षा और करियर को ध्यान में रखते हुए विवाह तय करना चाहिए।

 

 

2. परिवारिक संबंध: परिवारों के बीच आपसी समझ और मेलजोल का महत्व होना चाहिए।

 

 

3. रुचि और अनुभव: लड़के और लड़की की रुचियों और जीवन के अनुभवों का सम्मान होना चाहिए।

 

 

 

हिंदू विवाह अधिनियम और न्यायपालिका की भूमिका

 

वकील शैतान सिंह ने भारतीय न्याय व्यवस्था और हिंदू विवाह अधिनियम पर चर्चा करते हुए बताया कि भारत में विवाह एक कानूनी अनुबंध है। इसमें तलाक जैसे मामलों में न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

 

यह चिंता व्यक्त की गई कि तलाकशुदा महिलाओं को अक्सर समाज में अन्याय का सामना करना पड़ता है।

 

तलाक के बाद महिला पर “डायवोर्स टैग” लग जाता है, जिससे उन्हें राज्य की कोई सहायता नहीं मिलती और उन्हें आर्थिक और मानसिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

 

 

पैसे के लेन-देन और प्रथाओं पर रोक

 

चर्चा में यह भी कहा गया कि विवाह जैसे पवित्र बंधन में धन के लेन-देन की प्रथाओं को समाप्त किया जाना चाहिए।

 

“पैसे लेने-देने के टोटके” को खत्म कर पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाने पर जोर देना चाहिए।

 

 

वैज्ञानिक और व्यावहारिक समाधान की जरूरत

 

विवाह, बाल विवाह, और बेमेल रिश्तों के समाधान के लिए वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।

 

समाज को ऐसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए और मिल-बैठकर सही तरीके से हल निकालना चाहिए।

 

विवाह के निर्णय केवल सामाजिक दबाव या प्रथा के आधार पर नहीं होने चाहिए।

 

 

समाज को प्रगतिशील बनाने का आह्वान

 

बाल विवाह और बेमेल रिश्तों जैसे विषयों पर मंथन का उद्देश्य यह था कि समाज को सही सोच और नैतिक मूल्यों के साथ आगे बढ़ाया जाए।

युवा पीढ़ी को इन मुद्दों पर जागरूक करना, और महिलाओं को उनकी पसंद और अधिकार के प्रति संवेदनशील बनाना, समय की मांग है।

 

निष्कर्ष

 

यह आवश्यक है कि विवाह जैसे महत्वपूर्ण निर्णय, व्यक्तिगत योग्यता, रुचि, और सहमति के आधार पर लिए जाएं।

बाल विवाह और जबरन रिश्तों जैसी प्रथाओं को समाप्त करना और एक प्रगतिशील समाज का निर्माण करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

 

“विवाह केवल सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि जीवन का एक महत्वपूर्ण निर्णय  है जो सहमति, समझदारी और समानता के आधार पर होना चाहिए।”

 

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