Bishnoi samaj ke bhagvan jambheshr ke adarsh par amrta devi गुरु जंभेश्वर भगवान और अमृता देवी के आदर्श: पर्यावरण संरक्षण के प्रेरणास्त्रोत
परिचय
पर्यावरण संरक्षण आज के समय की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
प्रकृति, जो हमें जीवनदायिनी तत्व प्रदान करती है, अब हमारी लापरवाहियों के कारण संकट में है। ऐसे समय में गुरु जंभेश्वर भगवान और अमृता देवी जैसे पर्यावरण योद्धाओं के आदर्श हमें प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
।*गुरु जंभेश्वर भगवान, जिन्हें “जम्बाजी” भी कहा जाता है, बिश्नोई धर्म के संस्थापक थे, जिन्होंने प्रकृति और जीव-जंतुओं की रक्षा को धर्म का आधार बनाया।
अमृता देवी ने इन आदर्शों को अपने जीवन में अपनाते हुए पर्यावरण की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी।
यह ब्लॉग गुरु जंभेश्वर भगवान के जीवन, अमृता देवी के बलिदान, और आज के समय में पर्यावरण संरक्षण के लिए उनके आदर्शों को अपनाने के उपायों पर केंद्रित है।
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गुरु जंभेश्वर भगवान: पर्यावरण धर्म के संस्थापक
गुरु जंभेश्वर भगवान का जन्म विक्रम संवत 1508 (सन् 1451) में राजस्थान के नागौर जिले के पीपासर गांव में हुआ था।
वे बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक थे, जो पर्यावरण संरक्षण और मानवता की सेवा को जीवन का मुख्य उद्देश्य मानता है। बिश्नोई धर्म के 29 नियमों में से अधिकांश पर्यावरण संरक्षण, जीव-जंतुओं की रक्षा और वृक्षारोपण से संबंधित हैं।
गुरु जंभेश्वर भगवान ने सिखाया कि हर प्राणी और हर पेड़-पौधा इस धरती का हिस्सा है और हमें उनकी रक्षा करनी चाहिए। उन्होंने संदेश दिया:
1. वृक्षों की कटाई को पाप समझो।
2. पशुओं को मारने से बचो।
3. जल, वायु और मिट्टी को प्रदूषित न करो।
उनका उद्देश्य प्रकृति और मानवता के बीच सामंजस्य स्थापित करना था। उनके उपदेश आज के युग में और भी प्रासंगिक हैं, जब पर्यावरणीय समस्याएं वैश्विक चिंता का विषय बन चुकी हैं।
श्री गुरु जंभेश्वर भगवान विक्रम संवत 1593 सन 1536 ई को मिक्सर वृद्धि नवमी चीतल नवमी को लालासर में निर्वाण को प्राप्त हुए।
श्री गुरु जंभेश्वर भगवान का समाधि स्थल मुकाम में है
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अमृता देवी और खेजड़ली बलिदान
गुरु जंभेश्वर भगवान के सिद्धांतों को उनके अनुयायियों ने पूरी निष्ठा से अपनाया। इन्हीं अनुयायियों में अमृता देवी एक प्रमुख नाम हैं, जिन्होंने खेजड़ली गांव में पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
सन् 1730 में, जोधपुर के महाराजा ने अपने महल के निर्माण के लिए खेजड़ी के पेड़ों को कटवाने का आदेश दिया।
जब सैनिक पेड़ों को काटने पहुंचे, तो अमृता देवी ने उनका विरोध किया।
उन्होंने कहा, “सर साटा रूख

रहे तो भी सस्ता जाँण।” (अर्थात, सिर कट जाए लेकिन वृक्ष बच जाए तो भी सस्ता सौदा है।)
अमृता देवी और उनकी तीन बेटियों ने पेड़ों से लिपटकर अपने प्राण दे दिए। उनकी प्रेरणा से 363 बिश्नोई अनुयायियों ने भी बलिदान दिया। इस घटना ने खेजड़ली आंदोलन को जन्म दिया, जो आज भी पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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वर्तमान समय में अमृता देवी के आदर्शों का महत्व
आज के युग में, जब वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के विनाश की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, अमृता देवी के आदर्श अत्यंत प्रासंगिक हो जाते हैं। उनके बलिदान से हम यह सीखते हैं कि प्रकृति की रक्षा के लिए त्याग और समर्पण जरूरी है।
आज की पर्यावरणीय चुनौतियां:
1. वनों की कटाई: जंगलों का विनाश न केवल वन्यजीवों के निवास को खत्म करता है, बल्कि जलवायु संतुलन को भी बिगाड़ता है।
2. प्रदूषण: औद्योगिक गतिविधियों और प्लास्टिक कचरे के कारण जल, वायु और मिट्टी प्रदूषित हो रही है।
3. वन्यजीवों का संकट: कई प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। उनके निवास स्थान खत्म हो रहे हैं।
समाधान और संरक्षण के उपाय:
अमृता देवी और गुरु जंभेश्वर भगवान के सिद्धांतों के आधार पर, निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
1. वृक्षारोपण और वनों की सुरक्षा:
हर व्यक्ति को साल में कम से कम एक पेड़ लगाना चाहिए।
स्थानीय स्तर पर “वृक्ष बचाओ अभियान” चलाएं।
2. वन्यजीवों की रक्षा:
अवैध शिकार को रोकने के लिए कड़े कानून लागू करें।
राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य विकसित करें।
3. सामुदायिक जागरूकता:
स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य बनाएं।
ग्राम स्तर पर पर्यावरण संरक्षण समितियां बनाएं।
4. पानी का संरक्षण:
वर्षा जल संग्रहण को बढ़ावा दें।
अनावश्यक जल बर्बादी से बचें।
5. प्लास्टिक के उपयोग को कम करना:
पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण को प्राथमिकता दें।
प्लास्टिक के स्थान पर पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों का उपयोग करें।
6. धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों का उपयोग:
गुरु जंभेश्वर भगवान और अमृता देवी के आदर्शों को धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से प्रचारित करें।
खेजड़ली बलिदान दिवस को राष्ट्रीय स्तर पर “पर्यावरण दिवस” के रूप में मनाया जाए।
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बिश्नोई समाज की मौजूदा पहलें और योगदान
बिश्नोई समाज आज भी गुरु जंभेश्वर भगवान के उपदेशों का पालन करते हुए पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी है। वे न केवल अपने क्षेत्रों में वृक्षारोपण और वन्यजीव संरक्षण करते हैं, बल्कि विश्व स्तर पर भी पर्यावरण चेतना फैलाने में योगदान दे रहे हैं।
1. वन्यजीव संरक्षण: बिश्नोई समाज आज भी काले हिरण, चीतल और अन्य वन्यजीवों की रक्षा के लिए तत्पर रहता है।
2. स्थानीय पहल: राजस्थान के गांवों में बिश्नोई समाज पानी बचाने और पेड़ लगाने के अभियान चलाता है।
3. प्रेरणास्त्रोत: बिश्नोई समुदाय की परंपराएं न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी पर्यावरण प्रेम का संदेश देती हैं।
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निष्कर्ष
गुरु जंभेश्वर भगवान और अमृता देवी ने हमें सिखाया कि पर्यावरण केवल प्राकृतिक संसाधनों का भंडार नहीं, बल्कि जीवन का आधार है। उनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि हम अपने छोटे-छोटे प्रयासों से भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
आज जब पर्यावरण संकट हमारे दरवाजे पर खड़ा है, हमें उनके आदर्शों को अपनाकर एक हरित और स्थायी भविष्य के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। यह केवल हमारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारा कर्तव्य भी है।
चलो, गुरु जंभेश्वर भगवान और अमृता देवी के आदर्शों को अपनाकर एक ऐसा समाज बनाएं, जहां प्रकृति और मानवता का अनूठा सामंजस्य हो।
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