भारत-पाकिस्तान संबंध और बलूचिस्तान-खैबर पख्तूनख्वा में स्वतंत्रता संग्राम
भूमिका
India-Pakistan Relations & Balochistan-KPK Conflicts
भारत और पाकिस्तान के रिश्ते 1947 में विभाजन के बाद से ही जटिल और तनावपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों के बीच तीन बड़े युद्ध हो चुके हैं, जिनमें से दो मुख्य रूप से कश्मीर विवाद को लेकर हुए थे। हाल के वर्षों में संबंध सुधारने की कई कोशिशें की गई हैं, लेकिन सीमा पर तनाव, आतंकवाद और अलगाववादी आंदोलनों के कारण ये प्रयास बार-बार प्रभावित हुए हैं।
बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बढ़ते अलगाववादी आंदोलन पाकिस्तान की अखंडता के लिए गंभीर चुनौती बन चुके हैं। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (PTM) जैसे संगठन लगातार पाकिस्तान सरकार और सेना को चुनौती दे रहे हैं। इस स्थिति में भारत की भूमिका और रणनीति भी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है।
भारत-पाकिस्तान संबंधों की वर्तमान स्थिति
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के वर्षों में कई घटनाओं ने तनाव को बढ़ाया है।
पुलवामा हमला (2019): इस हमले के जवाब में भारत ने बालाकोट एयरस्ट्राइक किया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया।
अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला: 2019 में भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पाकिस्तान ने कड़ी प्रतिक्रिया दी।
सकारात्मक पहल (2024-2025):
जनवरी 2025 में भारत और पाकिस्तान ने अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की सूचियों का आदान-प्रदान किया।
अक्टूबर 2024 में भारतीय विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान का दौरा किया, जो एक दशक बाद किसी भारतीय विदेश मंत्री की पहली यात्रा थी।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इसे एक सकारात्मक शुरुआत बताया, लेकिन यह भी स्वीकार किया कि रिश्तों में सुधार के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा।
बलूचिस्तान: स्वतंत्रता संघर्ष और भारत की भूमिका
बलूचिस्तान, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा और संसाधन-संपन्न प्रांत है, लंबे समय से अलगाववादी आंदोलनों का केंद्र रहा है। बलूच नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार उनके संसाधनों का दोहन करती है, लेकिन विकास में उन्हें उचित भागीदारी नहीं मिलती।
BLA और स्वतंत्रता संग्राम
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) इस स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख संगठन है।
पाकिस्तान ने 2006 में इसे आतंकवादी संगठन घोषित किया था, लेकिन हाल के वर्षों में इसके हमलों में वृद्धि हुई है।
2020 में 32 हमले हुए थे, जबकि 2024 में यह संख्या बढ़कर 171 हो गई।
BLA चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का विरोध करता है, क्योंकि बलूचों का मानना है कि इससे उन्हें कोई फायदा नहीं होगा।
भारत की भूमिका
भारत ने आधिकारिक रूप से बलूचिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन नहीं किया है। लेकिन 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों का मुद्दा उठाया था। यह पहली बार था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इस विषय को सार्वजनिक रूप से संबोधित किया।
खैबर पख्तूनख्वा में स्वतंत्रता आंदोलन
बलूचिस्तान की तरह खैबर पख्तूनख्वा में भी अलगाववादी आंदोलन तेज हो रहा है।
पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (PTM) इस क्षेत्र के लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है।
PTM का दावा है कि आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की लड़ाई में सबसे अधिक नुकसान पश्तून समुदाय को हुआ है।
कुछ पश्तून नेता अब खुले तौर पर ‘पख्तूनिस्तान’ के गठन की मांग कर रहे हैं।
अफगानिस्तान के कुछ समूह इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि वहां भी पश्तूनों की बड़ी आबादी रहती है।
पाकिस्तान सरकार की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान सरकार ने खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में सैन्य अभियानों के लिए 60 अरब रुपये का बजट मंजूर किया है।
विरोध को दबाने के लिए सैन्य अभियान तेज किए जा रहे हैं।
पाकिस्तान के लिए बढ़ती चुनौतियां
1. अंतरराष्ट्रीय दबाव:
बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन पर अमेरिका और यूरोप के कई सांसदों ने चिंता जताई है।
2. आर्थिक संकट:
पाकिस्तान पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है।
बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में सैन्य अभियानों पर अतिरिक्त खर्च उसकी अर्थव्यवस्था पर और दबाव बढ़ाएगा।
3. चीन के साथ संबंधों में तनाव:
चीन ने CPEC परियोजना में भारी निवेश किया है, लेकिन बलूच अलगाववादियों द्वारा चीनी नागरिकों पर हमलों से चीन भी पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंतित है।
भारत की रणनीति क्या होनी चाहिए?
1. कूटनीतिक दबाव:
भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में हो रहे मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाना चाहिए।
2. रणनीतिक समर्थन:
भारत को बलूच और पश्तून संगठनों के साथ गुप्त संपर्क बनाए रखना चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर रणनीतिक लाभ उठाया जा सके।
3. सीमित हस्तक्षेप:
भारत को सतर्क रहना होगा, ताकि पाकिस्तान भारत पर उग्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप न लगा सके।
निष्कर्ष
भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बढ़ते अलगाववादी आंदोलनों ने पाकिस्तान की सुरक्षा और स्थिरता को गहरा संकट में डाल दिया है। भारत को इस स्थिति का राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से संतुलित लाभ उठाना चाहिए।
भारत को चाहिए कि वह अंतरराष्ट्रीय दबाव, रणनीतिक संबंध और कूटनीतिक सूझबूझ से काम करे, ताकि न केवल क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे, बल्कि पाकिस्तान को भी यह समझ में आए कि आतंकवाद को समर्थन देना उसके लिए खुद एक गंभीर समस्या बन सकता है।