Indias foreign policy neighborhood first contemporary of China

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भारत-चीन संबंध: प्रतिस्पर्धा एवं सामंजस्य की दोहरी रणनीति

 

भारत और चीन, एशिया के दो सबसे बड़े देश और वैश्विक शक्तियां, ऐतिहासिक, आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से एक-दूसरे के महत्वपूर्ण प्रतिद्वंद्वी हैं।

इन दोनों देशों के बीच संबंध जटिल रहे हैं, जहां एक ओर आर्थिक सहयोग की संभावनाएं हैं, वहीं दूसरी ओर सीमा विवाद और चीन की विस्तारवादी नीतियों से तनाव भी बढ़ा है।

1. चीन की रणनीतियाँ: भारत को घेरने की कूटनीति

 

चीन अपनी आर्थिक और सामरिक नीतियों के माध्यम से दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को लगातार बढ़ा रहा है। इसके मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं:

(i) स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स:

  • चीन द्वारा रणनीतिक रूप से बंदरगाहों और बुनियादी ढांचे का विकास किया जा रहा है, जिससे भारत को चारों ओर से घेरा जा सके।

 

श्रीलंका: हंबनटोटा बंदरगाह को चीन द्वारा लीज पर लिए जाने से भारत के लिए सामरिक खतरा बढ़ गया है।

 

पाकिस्तान: ग्वादर बंदरगाह चीन-पाक आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है, जो चीन को सीधा हिंद महासागर तक पहुंच प्रदान करता है।

 

बांग्लादेश और म्यांमार: इन देशों में बंदरगाह निर्माण और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के जरिए चीन की पकड़ मजबूत हो रही है।

 

 

(ii) बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI):

चीन का BRI परियोजना एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने वाला एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। भारत ने इसकी आलोचना करते हुए इसमें भागीदारी से इनकार किया है, क्योंकि CPEC भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है।

 

(iii) नेपाल में बढ़ता प्रभाव:

चीन ने नेपाल में बड़े पैमाने पर निवेश किया है और बुनियादी ढांचे के विकास के जरिए भारत के प्रभाव को चुनौती दे रहा है।

2. भारत का दृष्टिकोण: संतुलन की रणनीति

भारत को चीन के साथ सामरिक और आर्थिक संतुलन बनाने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है:

(i) सीमा विवादों पर कूटनीति:

भारत और चीन के बीच लंबे समय से सीमा विवाद जारी हैं।

डोकलाम और गलवान संघर्ष: ये घटनाएं चीन की आक्रामकता का स्पष्ट उदाहरण हैं।

भारत को सीमा विवादों पर व्यापक और स्थायी समाधान के लिए कूटनीतिक वार्ताएं जारी रखनी होंगी।

(ii) क्वाड और अन्य गठबंधन:

चीन की बढ़ती ताकत के जवाब में भारत को अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड (Quad) जैसे संगठनों को मजबूत करना चाहिए।

क्वाड हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए एक प्रभावी मंच बन सकता है

इसमें भारत की भागीदारी सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है।

(iii) व्यापारिक संतुलन:

भारत-चीन के बीच व्यापारिक संबंध काफी असंतुलित हैं, जहां भारत को भारी व्यापार घाटे का सामना करना पड़ता है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत भारत को घरेलू उत्पादन और मेक इन इंडिया जैसी नीतियों को मजबूत करना चाहिए।

डिजिटल और तकनीकी क्षेत्र में चीन की निर्भरता को कम करने के लिए भारत को घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देना चाहिए।l

(iv) सैन्य ताकत का आधुनिकीकरण:

भारत को अपनी रक्षा क्षमता को मजबूत करना होगा।

अत्याधुनिक हथियारों और प्रौद्योगिकी के विकास पर जोर देना चाहिए।

स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स के जवाब में भारत को सागर नीति (Security and Growth for All in the Region) को आगे बढ़ाना चाहिए।

3. आर्थिक और सामरिक प्रतिस्पर्धा

 

भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएं विश्व की दो सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं। हालांकि, चीन का वैश्विक आर्थिक प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है।

 

भारत को दक्षिण एशिया और अफ्रीका में अपने आर्थिक सहयोग को मजबूत करना होगा।

 

इन्फ्रास्ट्रक्चर और निवेश परियोजनाओं में भारत को विश्वसनीय साझेदार के रूप में खुद को स्थापित करना चाहिए।

तकनीकी कूटनीति:

चीन की हुआवेई और अन्य तकनीकी कंपनियों के मुकाबले भारत को अपनी तकनीकी कंपनियों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

डिजिटल इंडिया अभियान और 5G तकनीक के विकास में भारत को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना चाहिए।

4. भारत की “स्मार्ट पावर” रणनीति

चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करने के लिए भारत को स्मार्ट पावर (Smart Power) का उपयोग करना चाहिए, जिसमें हार्ड पावर (सैन्य शक्ति) और सॉफ्ट पावर (सांस्कृतिक और कूटनीतिक प्रभाव) का संतुलन हो।

सांस्कृतिक कूटनीति: भारत को बौद्ध धर्म और योग जैसे सांस्कृतिक पहलुओं का उपयोग अपने पड़ोसी देशों में प्रभाव बढ़ाने के लिए करना चाहिए।

सॉफ्ट पावर: भारत को शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवीय सहायता के जरिए दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी।

5. निष्कर्ष:

 

भारत-चीन संबंधों में प्रतिस्पर्धा और सामंजस्य का द्वंद्व चलता रहेगा। भारत को कूटनीति, सैन्य ताकत, आर्थिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक गठबंधनों के जरिए संतुलन स्थापित करना होगा। चीन की आक्रामक नीतियों के खिलाफ मजबूत रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हुए भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरना चाहिए।

 

मुख्य सुझाव:

 

1. क्वाड और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की भूमिका को मजबूत करना।

2. सीमा विवादों को सुलझाने के लिए प्रभावी कूटनीति को बढ़ावा देना।

3. आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत चीन पर व्यापारिक निर्भरता को कम करना।

4. सामरिक और तकनीकी ताकत का आधुनिकीकरण।

5. सॉफ्ट पावर के माध्यम से दक्षिण एशिया में चीन के प्रभाव को चुनौती देना।

भारत को बढ़ते चीन के प्रभाव और आर्थिक शक्ति का मुकाबला करने के लिए विकल्पों पर विचार करते हुए एक बहुआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। इस रणनीति में कूटनीति, व्यापारिक साझेदारी, सैन्य सहयोग और क्षेत्रीय संगठनों की भागीदारी शामिल होनी चाहिए।

1. विकल्प: चीन के स्थान पर अन्य देशों के साथ संबंध बढ़ाना

चीन के साथ व्यापार और आर्थिक संबंधों को सीमित करते हुए भारत कुछ प्रमुख देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर सकता है। इसके लिए निम्नलिखित विकल्प उपयुक्त हो सकते हैं:

(i) अमेरिका (United States):

फ़ायदा:

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक साझेदारी और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।

रक्षा क्षेत्र में अमेरिका के साथ इंडो-पैसिफिक रणनीति और क्वाड जैसी साझेदारियाँ चीन की घेराबंदी में मददगार हैं।

अमेरिका से अत्याधुनिक तकनीक और निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।

नुकसान:

अमेरिका की नीतियां अस्थिर हो सकती हैं, जिससे भारत की निर्भरता के जोखिम बढ़ेंगे।

अमेरिका के साथ बढ़ते संबंध चीन को और अधिक आक्रामक बना सकते हैं।

(ii) जापान:

फ़ायदा:

जापान के साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और तकनीकी सहयोग में साझेदारी मजबूत हो सकती है।

जापान मेक इन इंडिया और अन्य आर्थिक परियोजनाओं में विश्वसनीय साझेदार हो सकता है।

जापान और भारत का क्वाड गठबंधन दोनों देशों के हितों को सुरक्षित करता है।

नुकसान:

जापान की धीमी आर्थिक वृद्धि के कारण सहयोग की गति धीमी हो सकती है।

(iii) ऑस्ट्रेलिया:

फ़ायदा:

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापार और रक्षा क्षेत्र में साझेदारी को बढ़ावा मिलेगा।

ऑस्ट्रेलिया, क्वाड का एक मजबूत सदस्य है और भारत के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक अहम सहयोगी है।

ऑस्ट्रेलिया से ऊर्जा संसाधनों और प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति संभव है।

नुकसान:

ऑस्ट्रेलिया चीन के आर्थिक दबाव में आ सकता है, जिससे भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध प्रभावित हो सकते हैं।

(iv) दक्षिण कोरिया:

फ़ायदा:

भारत को तकनीकी क्षेत्र में दक्षिण कोरिया के साथ सहयोग से फायदा हो सकता है।

सैमसंग और LG जैसी कंपनियां भारत में निवेश कर सकती हैं।

नुकसान:

चीन दक्षिण कोरिया पर आर्थिक दबाव डालकर भारत के साथ उसके संबंधों को कमजोर कर सकता है।

(v) वियतनाम, इंडोनेशिया और ASEAN देश:

फ़ायदा:

दक्षिण पूर्व एशिया में भारत की पकड़ मजबूत होगी।

वियतनाम और अन्य ASEAN देशों के साथ रक्षा सहयोग और आर्थिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

नुकसान:

इन देशों की छोटी अर्थव्यवस्थाएं भारत के लिए लंबे समय में उतनी फायदेमंद नहीं हो सकतीं।

 

2. चीन को छोड़ने का संभावित नुकसान

यदि भारत चीन के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को पूरी तरह खत्म करने का प्रयास करता है, तो भारत को निम्नलिखित नुकसान उठाना पड़ सकता है:

व्यापार घाटा और कीमतों में वृद्धि:

भारत चीन से बड़ी मात्रा में सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, और फार्मास्युटिकल सामग्री आयात करता है।

चीन के विकल्प के बिना घरेलू कीमतें बढ़ सकती हैं और उद्योगों को नुकसान हो सकता है।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर प्रभाव:

चीन वैश्विक उत्पादन का एक केंद्र है। चीन से संबंध सीमित करने पर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटें आएंगी

 

टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर असर:

चीन की तकनीकी क्षमता और उत्पादन कौशल भारत के लिए एक सस्ता विकल्प है।

भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के लिए लंबा समय लगेगा।

 

 

 

3. संभावित फायदे: विकल्पों के साथ नई शुरुआत

चीन पर निर्भरता घटाने से भारत को निम्नलिखित लाभ मिल सकते हैं:

आत्मनिर्भरता:

भारत में स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम सफल होंगे।

नई रणनीतिक साझेदारियां:

अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और ASEAN देशों के साथ साझेदारी भारत को एक मजबूत वैश्विक शक्ति बनाएगी।

क्षेत्रीय सुरक्षा:

चीन के आक्रामक रवैये को संतुलित करने के लिए क्वाड जैसे मंचों में भारत की भूमिका मजबूत होगी।

डिजिटल और तकनीकी नेतृत्व:

भारत को डिजिटल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाते हुए डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करने का अवसर मिलेगा।

4. भारत की रणनीति: सावधानी के साथ कदम बढ़ाना

भारत को चीन से संबंधों को पूरी तरह खत्म करने के बजाय विवेकपूर्ण तरीके से संतुलन बनाना होगा:

1. चीन से आयात घटाना:

आवश्यक वस्तुओं में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना।

विकल्प के रूप में ASEAN और दक्षिण कोरिया से आयात बढ़ाना।

2. वैश्विक गठबंधन मजबूत करना:

अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के साथ रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को मजबूत करना।

3. क्षेत्रीय संगठनों का उपयोग:

BIMSTEC और IORA जैसे संगठनों में भागीदारी बढ़ाना, ताकि दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में चीन के प्रभाव को रोका जा सके।

4. प्राकृतिक संसाधनों का दोहन:

ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों के साथ ऊर्जा और खनिज संसाधनों के लिए समझौते करना।

5. सैन्य और तकनीकी ताकत बढ़ाना:

आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन को प्राथमिकता देते हुए भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करना चाहिए।

निष्कर्ष:

चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत को स्मार्ट पावर के साथ संतुलित कूटनीति अपनानी होगी। भारत को अन्य वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियों जैसे अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और ASEAN देशों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करना चाहिए। हालांकि, चीन के साथ व्यापारिक निर्भरता को खत्म करने के लिए एक लंबी और सोची-समझी योजना की जरूरत होगी ताकि भारत को नुकसान न हो और उसकी आत्मनिर्भरता और वैश्विक स्थिति मजबूत हो।

यह सही है कि वैश्विक शक्तियां जैसे अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और अन्य देश, चीन के साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखते हैं, भले ही उनके बीच राजनीतिक और सामरिक प्रतिस्पर्धा हो। ऐसे देशों के साथ भारत के व्यापार और कूटनीतिक संबंधों को बढ़ाना भारत के लिए न केवल सामरिक बल्कि आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हो सकता है।

1. चीन के साथ व्यापार रखने वाले देशों के साथ संबंध क्यों आवश्यक हैं?

(i) वैश्विक व्यापार की हकीकत:

चीन एक विशाल वैश्विक उत्पादन केंद्र है। अधिकांश देश आर्थिक निर्भरता के कारण चीन के साथ व्यापार करने को मजबूर हैं।

भारत को इस वास्तविकता को स्वीकार करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

 

भारत के लिए आवश्यक है कि वह इन देशों के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाते हुए चीन के प्रभाव को धीरे-धीरे संतुलित करे।

(ii) रणनीतिक साझेदारी:

अमेरिका, फ्रांस और यूरोपीय देश भारत के साथ सैन्य, तकनीकी और आर्थिक सहयोग में महत्वपूर्ण भागीदार हैं।

इन देशों के साथ संबंध मजबूत करने से भारत को:

तकनीकी क्षेत्र में निवेश और सहयोग मिलेगा।

रक्षा क्षेत्र में अत्याधुनिक हथियार और तकनीक प्राप्त हो सकेगी।

आर्थिक निवेश बढ़ेगा, जो भारत के मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देगा।

(iii) चीन की निर्भरता को कमजोर करना:

यदि भारत अमेरिका, फ्रांस और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपने व्यापार और निवेश को बढ़ाता है, तो यह लंबे समय में चीन पर वैश्विक निर्भरता को कमजोर कर सकता है।

उदाहरण के लिए:

अमेरिकी कंपनियां धीरे-धीरे चीन से बाहर जाकर भारत जैसे देशों में निवेश कर रही हैं।

यूरोपीय संघ भी चीन पर अपनी निर्भरता घटाने के लिए विविधीकरण की रणनीति अपना रहा है

2. भारत के लिए संभावित चुनौतियाँ

हालांकि इन देशों के साथ संबंध बढ़ाना फायदेमंद है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हो सकती हैं:

(i) चीन की प्रतिक्रिया:

चीन भारत के बढ़ते व्यापारिक संबंधों और गठबंधनों को सामरिक खतरे के रूप में देख सकता है।

चीन इसका जवाब आर्थिक दबाव डालकर या सीमा पर आक्रामक गतिविधियाँ बढ़ाकर दे सकता है।

(ii) वैश्विक नीतियों में अस्थिरता:

अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों की आर्थिक और राजनीतिक प्राथमिकताएँ समय-समय पर बदलती रहती हैं।

भारत को सुनिश्चित करना होगा कि वह इन देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखे।

(iii) भारत के उद्योगों पर दबाव:

यदि भारत इन देशों से व्यापार बढ़ाता है, तो कुछ भारतीय उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से नुकसान हो सकता है।

इसके लिए भारत को घरेलू उत्पादन को मजबूत करना होगा।

3. भारत के लिए लाभ: व्यापारिक संतुलन

चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए अमेरिका, फ्रांस और अन्य मित्रवत देशों के साथ संबंध बढ़ाने के निम्नलिखित लाभ होंगे:

(i) विदेशी निवेश में वृद्धि:

अमेरिका और यूरोपीय देश भारत में निवेश बढ़ाएंगे, जो रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा।

उदाहरण: Apple, Google, और Amazon जैसी कंपनियां भारत में उत्पादन बढ़ा रही हैं।

(ii) तकनीकी सहयोग:

अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ साझेदारी से भारत को तकनीकी और डिजिटल क्षेत्र में नेतृत्व का अवसर मिलेगा।

5G, AI और साइबर सुरक्षा में इन देशों के साथ सहयोग भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ाएगा।

(iii) रक्षा और सैन्य शक्ति:

भारत अमेरिका और फ्रांस से अत्याधुनिक रक्षा उपकरण और तकनीकी ज्ञान हासिल कर सकता है।

उदाहरण: भारत और फ्रांस के बीच राफेल लड़ाकू विमान का सौदा।

(iv) व्यापार का विविधीकरण:

भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह चीन पर अत्यधिक व्यापारिक निर्भरता को कम करे और अन्य देशों के साथ विविध व्यापारिक साझेदारी बनाए।

सतत और स्थिर व्यापारिक संबंध भारत के लिए दीर्घकालिक लाभदायक होंगे।

 

 

4. भारत की रणनीति: संतुलन और विवेकपूर्ण कूटनीति

भारत को वैश्विक व्यापार में संतुलन बनाते हुए स्मार्ट कूटनीति अपनाने की आवश्यकता है:

1. अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ गहरे व्यापारिक और तकनीकी संबंध विकसित करना।

2. ASEAN देशों (वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड) के साथ व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना।

3. चीन के साथ विवादों को कूटनीति के माध्यम से सुलझाते हुए, व्यापार को धीरे-धीरे कम करना।

4. घरेलू उद्योगों को सशक्त बनाकर चीन से आयात की निर्भरता को कम करना।

निष्कर्ष:

विश्व के अन्य देश चीन के साथ व्यापारिक संबंध रखते हैं, लेकिन भारत के पास विकल्प है कि वह अमेरिका, फ्रांस, जापान और ASEAN देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करे। इससे भारत को आर्थिक और सामरिक लाभ मिलेगा।

हालांकि, भारत को चीन के साथ व्यापारिक और राजनीतिक संबंधों में सावधानी बरतते हुए अपनी आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। यह संतुलित रणनीति भारत को वैश्विक स्तर पर एक मजबूत और आत्मनिर्भर शक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक होगी।

 

 

 

 

 

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