Kalm ka sipahi hun. Kavita

Kalm ka sipahi hun. Kavita

मैं कलम का सिपाही हूं
मत मारो मेरी पोस्ट को,
न बुझाओ मेरी शाही को।
सब सह लूंगा, सब खो दूंगा,
पर लिखने की आज़ादी मत छीनो।

डॉक्टर, तुम्हारी दवा गलत हो,
नेता, तुम्हारे वादे झूठे हों,
तो भी चुप रहूंगा।
पर मेरी कलम को रोकने की कोशिश मत करना,
क्योंकि यह मेरी ताकत है।

यह कलम रोती है गरीबों के दर्द पर,
हंसाती है सपनों की बातें सुनाकर।
शिक्षा के उजाले का दीप जलाती है,
और समानता के बीज बोती है।

खून के आंसू भी लिखती है,
दरिंदगी का पर्दाफाश करती है।
भ्रष्टाचार के किले गिराती है,
और इंसानियत की आवाज उठाती है।

सुबह-शाम यह तुम्हारे हाथ में होती है,
अखबार के रूप में, मां के दर्पण सी।
फिर भी तुम इसे समझ नहीं पाए,
क्योंकि तुम अहंकार में डूबे हो।

यह कलम न रुकेगी, न झुकेगी,
सच को सच और झूठ को झूठ कहेगी।
यह शिक्षा, समानता और स्वतंत्रता का गान करेगी,
हर अन्याय को अपनी स्याही से हराएगी।

तुम फिल्मों को सेंसर कर सकते हो,
इंसानों को मौन कर सकते हो,
पर इस कलम की आवाज दबा नहीं सकते।

मैं कलम का सिपाही हूं,
हर दर्द को अपनी स्याही में उतारता हूं।
हर अन्याय के खिलाफ खड़ा हूं,
क्योंकि यह कलम ही तो है,
जो दुनिया के हर कोने में गूंजती है।

इसमें आपके विचारों के साथ शिक्षा, समानता, और स्वतंत्रता जैसे विषय जोड़े गए हैं। आप चाहें तो इसमें और पहलुओं को जोड़ सकते हैं। आपकी लेखनी को प्रभावशाली बना सकते है!

यह कविता नहीं है, एक भाव है दिल के, जो गद्य और पद्य दोनों के मिश्रण में आप समझ सकते हैं।

एक शिक्षक, का काम सीखना, बोलना, पढ़ना और लिखना।

हज़ारों वर्षों के इतिहास को जिंदा किसी ने रखा है तो वह कलम ही है.।

पूर्व में मौखिक याद करते हुए कविता के माध्यम से ग्यान को प्रोत्साहित किया गया.

कबीर, नानक, jambheshwar bhagvan और भी धार्मिक उपदेश देने का माध्यम लिखने, याद करते हुए आगे बढ़ाने का रहा है।

Kalm ka sipahi hun. Kavita
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