वन नेशन, वन इलेक्शन: कैबिनेट की मंजूरी और देश में एक साथ चुनावों की योजना का व्यापक विश्लेषण
परिचय
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक देश, एक चुनाव) का विचार भारतीय लोकतंत्र में लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने इस अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
12 दिसंबर 2024 को मोदी कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दी है, और इसे शीतकालीन सत्र में संसद में पेश करने की संभावना है। यह निर्णय देश के चुनावी परिदृश्य को पूरी तरह से बदल सकता है।
वन नेशन, वन इलेक्शन का इतिहास
1950 में भारत के गणराज्य बनने के बाद, 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे।
इन चुनावों में मतदाता केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक ही समय पर वोट देते थे। हालांकि, राज्यों के पुनर्गठन और राजनीतिक अस्थिरता के चलते यह व्यवस्था 1968-69 में टूट गई।k
1983 में, चुनाव आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस व्यवस्था को फिर से शुरू करने का सुझाव दिया। 1999 में विधि आयोग ने भी इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट दी।
हाल के वर्षों में, इस विचार को भाजपा के चुनावी घोषणापत्र और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में प्रमुखता से स्थान दिया गया है।
वर्तमान में प्रस्ताव की स्थिति
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया, जिसने इस योजना के लिए विस्तृत रूपरेखा तैयार की।
समिति ने 18,000 पृष्ठों की रिपोर्ट में चरणबद्ध तरीके से चुनाव एक साथ कराने का सुझाव दिया। कैबिनेट ने इस रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है और इसे संसद में पेश किया जाना है।
इस योजना का उद्देश्य और संभावित लाभ
वन नेशन, वन इलेक्शन का मुख्य उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को आसान, सस्ता और अधिक व्यवस्थित बनाना है। इसके कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
1. समय और धन की बचत: चुनाव कराने में बड़ी मात्रा में संसाधन और समय लगता है। एक साथ चुनाव से इन दोनों की बचत होगी।
2. शासन में स्थिरता: चुनावी आचार संहिता बार-बार लागू होने के कारण नीतिगत निर्णयों में देरी होती है। एक साथ चुनाव से यह समस्या कम होगी।
3. मतदाता जागरूकता: एक ही समय पर चुनाव होने से मतदाताओं को स्पष्टता और जागरूकता बढ़ाने का अवसर मिलेगा।
इस योजना की चुनौतियां
इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन में कई बाधाएं हैं:
1. संवैधानिक और कानूनी मुद्दे: भारत का संविधान विभिन्न स्तरों पर चुनावों की अलग-अलग व्यवस्था की अनुमति देता है। इसे बदलने के लिए व्यापक संशोधनों की आवश्यकता होगी।
2. प्रशासनिक तैयारियां: देशभर में चुनाव एक साथ कराने के लिए बड़ी संख्या में ईवीएम, वीवीपैट और अन्य संसाधनों की जरूरत होगी।
3. राजनीतिक सहमति: विपक्षी दलों ने इस योजना का विरोध करते हुए इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए हानिकारक बताया है।
सरकार की मंशा और विपक्ष की प्रतिक्रिया
सरकार का तर्क है कि यह कदम भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अधिक कुशल और किफायती बनाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे “चुनावी सुधारों की दिशा में ऐतिहासिक कदम” बताया है।
दूसरी ओर, विपक्ष ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” बताते हुए विरोध जताया है। उनका मानना है कि यह राज्यों की स्वायत्तता और संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है।
क्या यह संभव है?
सैद्धांतिक रूप से, पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना संभव है, लेकिन इसके लिए राजनीतिक, कानूनी और प्रशासनिक स्तर पर अभूतपूर्व समन्वय की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक ऐसा विचार है जो भारत के चुनावी इतिहास में एक नई दिशा तय कर सकता है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियां हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद और देश की जनता इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक परिवर्तन साबित हो सकता है।
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