मारवाड़ का अर्द्धकुंभ: सुईया मेले की ऐतिहासिक यात्रा
सुइयां मेला का आयोजन एवं महत्व
राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के चौहटन कस्बे में लगने वाला सुईया मेला एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था, इतिहास और संस्कृति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
इसे ‘मारवाड़ का अर्द्धकुंभ’ कहा जाता है, और इसकी प्रसिद्धि पूरे देश में फैली हुई है।
सुईया मेले की अद्वितीयता
यह मेला किसी निश्चित तारीख को नहीं बल्कि एक विशेष योग के संयोग पर आयोजित किया जाता है।
पांच योग—पौष महीना, अमावस्या, सोमवार, व्यातिपात योग
और मूल नक्षत्र—के संयोग के साथ यह मेला भरता है। इसकी अनूठी परंपरा इसे और अधिक विशेष बनाती है।
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इतिहास और पौराणिक महत्व
महंत जगदीशपुरी महाराज के अनुसार, सुईया मेला 12वीं शताब्दी से प्रारंभ हुआ
। सुईया भगवान महादेव के एक भक्त थे, जिन्होंने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व और नाम से जोड़ने का वरदान दिया।
तभी से यह स्थान सुईया महादेव के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
डूंगरपुरी महाराज की हस्तलिखित पुस्तक डूंगरपुराण में भी सुईया भक्त और उनकी तपस्या का उल्लेख मिलता है।
यहां का मंदिर और आसपास का क्षेत्र अनादि काल से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है।
धार्मिक महत्व
मेले में श्रद्धालु सूईंया महादेव मंदिर, कपालेश्वर महादेव मंदिर और डूंगरपुरी मठ के दर्शन करते हैं।
यहां स्थित पांच जल कुंडों में स्नान करने का विशेष महत्व है, जिसे कुंभ के समान पवित्र माना जाता है।
मान्यता है कि इन कुंडों में स्नान करने से पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2024 का सुईया मेला
सात साल के लंबे अंतराल के बाद, 2024 में यह मेला 30 दिसंबर को सोमवती अमावस्या और विशेष योग के संयोग पर भरा।
इस आयोजन के लिए सरकार ने सूईंया धाम के जीर्णोद्धार हेतु दो करोड़ रुपये की घोषणा की।
15 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने इस मेले में हिस्सा लिया।
श्रद्धालुओं के लिए पार्किंग और पैदल मार्ग सहित विशेष इंतजाम किए गए थे।
हालांकि, छोटे बच्चों, बुजुर्गों और असहाय लोगों को मेले तक पहुंचने में कठिनाई से बचाने के लिए कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए।
मेले की भव्यता
सुईया मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है।
यहां पहाड़, झरने और रेत के टीलों की प्राकृतिक सुंदरता श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक और प्राकृतिक आनंद प्रदान करती है।
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सुईया मेला न केवल मारवाड़ क्षेत्र की समृद्ध धार्मिक परंपराओं को जीवंत रखता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक भी है।
यह मेला श्रद्धालुओं के लिए आस्था का पर्व है, और इसकी ऐतिहासिक यात्रा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।
- सुंईया मेला: धर्मशास्त्रों के अनुसार अद्वितीय महत्व
सुंईया मेले का आयोजन केवल विशेष धार्मिक योगों के संयोग पर होता है, जो इसे अत्यंत दुर्लभ और पवित्र बनाता है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार, यह मेला तब भरा जाता है जब पांच विशिष्ट योग—पौष माह, सोमवार, अमावस्या, मूल नक्षत्र और व्यातिपात योग—एक साथ आते हैं।
यही विशेषता इस मेले को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।
- धार्मिक महत्व और मान्यताएं
सुंईया मेले का संबंध पांडवों की तपोभूमि से जुड़ा हुआ है।
ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र स्थान पर दर्शन करने और कुंडों में स्नान करने से असंख्य पापों का क्षय हो जाता है।
एक प्राचीन कथा के अनुसार, पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में 12 वर्षों तक तपस्या की और इन पांचों योगों के संयोग की प्रतीक्षा की।
हालांकि, उस दौरान यह योग नहीं बन पाया, जिससे वे अत्यंत कुपित हुए और श्राप दिया कि भविष्य में कलयुग में इस योग का लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
- विशेष योग और आयोजन तिथियां
धर्मशास्त्रों के अनुसार, इस मेला का आयोजन उन्हीं दुर्लभ वर्षों में होता है जब ये पांच योग एक साथ आते हैं।
इतिहास में यह मेला 1944, 1946, 1949, 1956, 1970, 1974, 1977, 1990, 1997, 2005, 2017 और अब 2024 में आयोजित हुआ।
इसके बाद 2027, 2032 और 2041 में भी यह मेला आयोजित होगा।
- पवित्रता और पुण्य लाभ
सुंईया मेला धर्म और आस्था का प्रतीक है।
श्रद्धालु यहां कुंडों में स्नान करके और तपोभूमि के दर्शन करके पुण्य अर्जित करते हैं।
मान्यता है कि इस मेले का पुण्य लाभ कुंभ के समान है, और इस परंपरा ने इसे ‘मारवाड़ का अर्द्धकुंभ’ के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
- निष्कर्ष
सुंईया मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि आध्यात्मिकता और भारतीय संस्कृति की गहराई को भी प्रदर्शित करता है।
विशेष योग पर आयोजित इस मेले का माहात्म्य आने वाली पीढ़ियों को धर्म और परंपरा कासंदेश देता रहेगा।
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