Jalor mange javai ka hak : kisaano ka mahapadav

जवाई बांध: ऐतिहासिक महत्व, वर्तमान विवाद और समाधान के उपाय

Jalor mange javai ka hak : kisaano ka mahapadav

जवाई बांध: “मारवाड़ का अमृत सरोवर”

पश्चिमी राजस्थान के सूखे और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए जवाई बांध जल आपूर्ति और सिंचाई की मुख्य धारा है।

इसे “मारवाड़ का अमृत सरोवर” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह लाखों लोगों और हजारों एकड़ कृषि भूमि की जीवनरेखा है।

लेकिन इसके निर्माण ने ऐतिहासिक, पर्यावरणीय, और सामाजिक पहलुओं पर गहरे प्रभाव छोड़े हैं।

आज यह बांध न केवल राजस्थान के विकास की गाथा है, बल्कि जल विवादों का एक ज्वलंत मुद्दा भी बन गया है।

 

 

जवाई बांध का ऐतिहासिक महत्व

 

1. स्थापना और निर्माण

जवाई बांध का शिलान्यास 13 मई 1946 को जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह ने किया।

इसका निर्माण अंग्रेजी इंजीनियर ऐडगर की देखरेख में शुरू हुआ और 1956 में राजस्थान के गठन के बाद मुख्य अभियंता मोती सिंह के मार्गदर्शन में पूर्ण हुआ।

 

ऊंचाई: 81 मीटर

 

लंबाई: 770 मीटर

 

जल भंडारण क्षमता: 7887.5 मिलियन क्यूबिक फीट

Jalor mange javai ka hak : kisaano ka mahapadav

 

 

2. भौगोलिक स्थिति

यह बांध लूनी नदी की सहायक जवाई नदी पर पाली जिले में स्थित है।

इसका प्रभाव सिरोही, जालोर, और जोधपुर जिलों पर भी पड़ता है।

 

 

3. जल वितरण की उपयोगिता

 

सिंचाई: 102,315 एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई

 

पेयजल: पाली और जोधपुर जिलों के लिए मुख्य जल स्रोत

 

Jalor mange javai ka hak : kisaano ka mahapadav

 

4. सेई बांध परियोजना (1971):

जल क्षमता बढ़ाने के लिए सेई बांध से पानी लाने के लिए 7 किमी लंबी सुरंग का निर्माण किया गया।

यह योजना 1977 में लागू हुई।

 

Jalor mange javai ka hak : kisaano ka mahapadav

 

 

 

वर्तमान विवाद और समस्याएं

जवाई बांध ने जहां पाली और जोधपुर जिलों की जल जरूरतों को पूरा किया, वहीं सिरोही और जालोर जिलों में जल असंतुलन की समस्या पैदा हो गई।

 

जालोर के किसानों की मांग:

 

जवाई नदी पहले जालोर के सायला और आसपास के क्षेत्रों में बहती थी।

लेकिन बांध बनने के बाद इस पानी का प्रवाह बंद हो गया।

 

जालोर जिले के जल स्रोत (तालाब, बावड़ियां) रिचार्ज नहीं हो पाते, जिससे किसानों को सिंचाई और पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है।

 

किसान पिछले 16 दिनों से जालोर जिला कलेक्टर कार्यालय के बाहर धरने पर बैठे हैं।

वे जवाई बांध के पानी में अपने हिस्से की मांग कर रहे हैं।

 

 

राजनीतिक असफलता:

विभिन्न सरकारों और राजनीतिक दलों ने जालोर को जवाई का पानी देने का वादा किया, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया।

 

 

Jalor mange javai ka hak : kisaano ka mahapadav

 

समाधान के संभावित उपाय

 

1. पानी का पुनर्वितरण:

जवाई बांध के पानी का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिए नई जल नीति बनाई जानी चाहिए।

 

जालोर और सिरोही जिलों के लिए न्यूनतम जल आपूर्ति सुनिश्चित हो।

 

जल विवाद के समाधान के लिए स्थानीय और राज्य स्तर पर प्रभावी संवाद स्थापित किया जाए।

 

 

 

2. स्थानीय जल स्रोतों का पुनर्जीवन:

 

पुराने तालाब, बावड़ियां और चेक डैम्स का पुनर्निर्माण कर जल भंडारण को बढ़ाया जा सकता है।

 

जल स्रोतों को पुनर्जीवित कर भूमिगत जल स्तर में सुधार लाया जा सकता है।

 

 

 

3. नई जल प्रबंधन परियोजनाएं:

लूनी नदी और अन्य जल स्रोतों के आधार पर सिरोही और जालोर में नई जल प्रबंधन परियोजनाओं को लागू करना चाहिए।

 

 

4. वर्षा जल संचयन:

 

शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देकर जल संकट कम किया जा सकता है।

 

स्थानीय समुदायों को इस प्रक्रिया में भागीदार बनाया जाए।

 

 

 

5. सरकारी हस्तक्षेप:

धरने पर बैठे किसानों की मांगें सुनकर त्वरित समाधान लाया जाए।

ठंड के मौसम में महिलाओं और पुरुषों की कठिनाइयों को देखते हुए जल्द से जल्द समस्या का हल निकाला जाए।

 

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

जवाई बांध न केवल एक ऐतिहासिक परियोजना है, बल्कि यह राजस्थान के विकास और जल प्रबंधन का प्रतीक भी है।

हालांकि, जल वितरण में असमानता ने जालोर और सिरोही के किसानों के लिए संकट खड़ा कर दिया है।

 

“जालोर मांगे जवाई का हक” की मांग उचित है।

 

किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए।

 

जल संकट का स्थायी समाधान क्षेत्रीय जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने और नई योजनाएं शुरू करने से संभव है।

 

 

यह आवश्यक है कि जवाई बांध के निर्माण के कारण प्रभावित हुए क्षेत्रों को

भी उनके हिस्से का जल मिले। इससे न केवल जल विवाद का समाधान होगा, बल्कि क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि भी आएगी।

 

1 thought on “Jalor mange javai ka hak : kisaano ka mahapadav”

Leave a Comment