Kisan aandolan:shambhu boarder se dehli ki or pedal ravana

किसानों का संघर्ष: भारतीय कृषि नीतियों का समीक्षात्मक अध्ययन और केंद्र-राज्य की जिम्मेदारियां

Kisan aandolan:shambhu boarder se dehli ki or pedal ravana

परिचय

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां 50% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है।

समय-समय पर किसान अपनी समस्याओं और मांगों को लेकर आंदोलित होते रहे हैं।

हाल के वर्षों में, किसानों के आंदोलन ने न केवल आर्थिक और सामाजिक प्रभाव डाला है, बल्कि सरकारों की नीतियों पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा है।

2020 में पारित तीन कृषि कानूनों और उनके रद्दीकरण के बाद भी किसानों की मांगें पूरी नहीं हुईं।

इस लेख में केंद्र-राज्य के अधिकार क्षेत्र और किसान आंदोलन की प्रासंगिकता का विश्लेषण किया गया है।

 

 

 

कृषि: राज्य, केंद्र, और समवर्ती सूची में स्थिति

 

भारतीय संविधान के सातवें अनुसूची के अनुसार, विषयों को तीन सूचियों में विभाजित किया गया है:

 

1. राज्य सूची: कृषि, भूमि, कृषि मंडी, फसल बीमा जैसे विषय राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं।

राज्यों को इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है।

 

 

2. केंद्र सूची: अंतर-राज्य व्यापार, आयात-निर्यात, वित्तीय नीतियां केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती हैं।

 

 

3. समवर्ती सूची: शिक्षा, पर्यावरण, और श्रम जैसे विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।

 

 

 

हालांकि, जब केंद्र सरकार समवर्ती सूची में कोई कानून बनाती है, तो वह राज्यों में अनिवार्य रूप से लागू होता है।

परंतु राज्य सूची के विषयों पर केंद्र का कानून तभी प्रभावी हो सकता है, जब राज्य सहमत हों।

 

 

 

2020 के तीन कृषि कानून: कानूनी और सामाजिक प्रभाव

 

2020 में पारित तीन कृषि कानूनों का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सुधार और किसानों को सशक्त बनाना था।

परंतु इनमें कई प्रावधान विवादास्पद रहे:

 

1. कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020

 

किसानों को मंडी से बाहर अपनी फसल बेचने की स्वतंत्रता दी गई।

 

किसानों का डर था कि यह मंडी प्रणाली और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कमजोर करेगा।

 

 

 

2. कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020

 

किसानों और निजी कंपनियों के बीच समझौते की अनुमति दी गई।

 

आशंका थी कि इससे किसानों का शोषण हो सकता है।

 

 

 

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020

 

अनाज, दलहन, आलू, प्याज आदि को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया।

 

यह जमाखोरी और मूल्य वृद्धि का कारण बन सकता था।

 

 

 

 

विरोध और कानून रद्दीकरण:

इन कानूनों के खिलाफ लाखों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर ऐतिहासिक आंदोलन किया।

अंततः, नवंबर 2021 में, सरकार ने इन कानूनों को रद्द कर दिया।

 

 

 

किसानों की मौजूदा मांगें

 

कानून रद्द होने के बावजूद किसान अपनी अन्य मांगों के लिए आंदोलनरत हैं:

 

1. MSP की कानूनी गारंटी: वर्तमान में MSP एक सरकारी नीति है, कानून नहीं।

किसान इसे कानूनी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं।

 

 

2. कर्ज माफी: छोटे और सीमांत किसानों के लिए कर्ज माफी की मांग की जा रही है।

 

 

3. पेंशन और सामाजिक सुरक्षा: बुजुर्ग किसानों के लिए मासिक पेंशन की आवश्यकता बताई गई है।

 

 

4. पराली जलाने पर दंड समाप्त करना: किसानों का तर्क है कि यह समस्या संरचनात्मक है और दंड समाधान नहीं है।

 

 

 

 

 

केंद्र-राज्य के बीच समन्वय की आवश्यकता

 

राज्य सरकार की भूमिका:

 

कृषि राज्यों का विषय है, इसलिए मंडियों का प्रबंधन, बीमा योजनाएं, और समर्थन मूल्य पर राज्य सरकारों की बड़ी जिम्मेदारी है।

 

कई राज्य MSP पर कानून बनाने की प्रक्रिया में हैं, लेकिन इसे व्यापक रूप से लागू करने में असफल रहे हैं।

 

 

केंद्र सरकार की जिम्मेदारी:

 

समवर्ती सूची के तहत बनाए गए कानून जैसे कृषि सुधार अधिनियम, राज्यों की सहमति के बिना लागू नहीं किए जा सकते।

 

केंद्र सरकार को चाहिए कि वह किसानों की चिंताओं को समझे और नीतियों में संशोधन करे।

 

 

 

Kisan aandolan:shambhu boarder se dehli ki or pedal ravana

वर्तमान स्थिति: शंभू बॉर्डर से दिल्ली मार्च

 

पंजाब और हरियाणा के 101 किसानों का जत्था न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी और अन्य मांगों को लेकर दिल्ली की ओर पैदल मार्च कर रहा है।

 

हरियाणा प्रशासन ने मार्च को रोकने के लिए अंबाला जिले में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया।

 

यह स्थिति केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संवादहीनता को दर्शाती है।

 

 

 

 

समीक्षा: आंदोलन का औचित्य

 

यदि कृषि राज्य सूची में आता है, तो किसानों को राज्य सरकारों से संवाद करना चाहिए।

लेकिन केंद्र सरकार द्वारा कानून पारित करने के बाद, यह उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह किसानों की समस्याओं का समाधान करे।

 

केंद्र को नीतियों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।

 

राज्य सरकारों को अपने अधिकार क्षेत्र के तहत कृषि सुधार लागू करने चाहिए।

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

भारतीय किसान आंदोलन केवल आर्थिक समस्याओं का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी को भी उजागर करता है।

लोकतांत्रिक शासन में सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे जनहित में काम करें।

किसानों की मांगों को गंभीरता से लेना और कृषि क्षेत्र में दीर्घकालिक सुधार करना समय की आवश्यकता है।

यह न केवल किसानों के लिए, बल्कि देश की संपूर्ण कृषि अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभकारी होगा।

 

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