The Importance of the Elections of the Akhil Bhartiya Bishnoi Mahasabha

 The Importance of the Elections of the Akhil Bhartiya Bishnoi Mahasabha. अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के चुनाव का महत्व।

अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा का एक परिचय.

बिश्नोई जाति के विचारशील व्यक्तियों ने जंभेश्वर भगवान के नियमों को पालने वाले समाज के संगठन एवं विकास के लिए, दिसंबर 1921 में नगीना उत्तर प्रदेश में एक सभा की स्थापना की जिसका नाम बिश्नोई सभा था।

फरवरी 1921 में प्रचारित एक परिपत्र के अनुसार अखिल भारत वर्षीय बिश्नोई सभा का पहला अधिवेशन नगीना में 1921 में, 26 से 28 मार्च तक हुआ था।

प्रथम अधिवेशन के सभापति राय बहादुर हर प्रसाद वकील और मंत्री रामस्वरूप कोटी वाले थे। इस सभा का सर्वप्रथम कार्यालय नगीना उत्तर प्रदेश में स्थापित किया गया था। जो कालांतर में मुक्तिधाम मुकाम राजस्थान में स्थानांतरित कर दिया गया।

बिश्नोई समाज की स्थापना श्री गुरु जंभेश्वर भगवान ने विक्रम संवत 1542 कार्तिक बड़ी अष्टमी के दिन समराथल धोरे पर 29 नियमों की नियमावली देकर पाहल बनाया था। और शब्दवाणी का व्याख्यान देकर बिश्नोई धर्म की स्थापना की गई। पहली बार  पुलहोजी  पवार को बिश्नोई बनाया गया।

राजस्थान का इतिहास गवाह है कि विक्रम संवत 1542 में भीषण अकाल था इस क्षेत्र के लोगों ने जैसे तैसे आसोज महीना तो पार कर लिया, लेकिन पशुओं तथा मनुष्य का जीना मुश्किल हो गया था।

एक दिन भगवान जंभेश्वर के चाचा पुलहोजी  पवार समराथल धोरे पर आए। जांभोजी ने  पुलहोजी को 29 धर्म नियमों की आचार संहिता बताइ। जिया ने जूगती और मुआ ने मुक्ति का पाठ पढ़ाया। तो  पुलहोजी ने स्वर्ग नरक होने या नहीं होने की शंका प्रकट की, तो जांभोजी ने अपनी दिव्य दृष्टि पुलहोजी को प्रदान कर स्वर्ग नरक दिखा दिए। पुलहोजी को विश्वास हो गया। वे जांभोजी के अनुयाई बन गए। इस प्रकार दूसरे लोग भी जंभेश्वर भगवान के दिव्य दृष्टि में विश्वास कर अनुयाई बनते गए।

बिश्नोई धर्म का महत्वपूर्ण इतिहास.

बिश्नोई धर्म की स्थापना सामाजिक राजनीतिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण थी। उस समय समाज में चारों तरफ अंधविश्वास, कर्मकांड और अशिक्षा का बोलबाला था।

जंभेश्वर भगवान ने समाज में फैली हुई भ्रांतियां और अंधविश्वास को दूर कर एक नई दिशा.,एक नया प्रकाश फैलाया जिससे समाज के लोग जांभोजी के साथ बिश्नोई धर्म का पालन करने लगे। बिश्नोई धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है. जो जंभेश्वर भगवान के श्री मुख से कहें गए हुए वचनों, शब्दवाणी एवं 29 नियमों का पालन करता है।

जंभेश्वर भगवान समाज में फैले हुए पाखंड कर्म कांड और अंधविश्वास का खंडन किया। चारों तरफ फैली हुई भ्रांतियों को दूर किया। प्रकृति के प्रति प्रेम भाव रखना सभी जीवों के प्रति दया एवं अहिंसा का भाव रखने का उपदेश दिया। जिसका बिश्नोई धर्म में पालन किया जाता है। पेड़ पौधों एवं जीव जंतुओं को बचाने के लिए जांभोजी ने कहा कि

“सर साठे रुख रहे, तो भी ससतों जान”.

अमृता देवी जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गई तो एक क्षण में उनकी गर्दन काट कर से सर से अलग कर दिया। फिर तीनों पुत्रियां पेड़ से लिपट गई और उनकी भी गर्दन काटकर सर तन से अलग कर दिया।

इस प्रकार पेड़ों की रक्षा के लिए बिश्नोई धर्म में 363 लोगों ने अपना सर कटा कर बलिदान दिया।

विश्व में पेड़ों की रक्षा के लिए सर कटाना अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है।जहां चारों तरफ ग्लोबल वार्मिंग और एनवायरमेंट की बात हो रही है, इस संबंध में जंभेश्वर भगवान ने 500 साल पहले बता दिया था कि हमें जीव जंतुओं एवं पेड़ पौधों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की बलि देनी पड़े तो भी पेड़ को बचाना चाहिए।

ऐसे गौरवशाली समाज में अध्यक्ष पद की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है ताकि समाज का गौरव और मर्यादा बनी रहे।

अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के अध्यक्ष पद का महत्व

बिश्नोई समाज की अनूठी परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित करते हुए समाज के विकास और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देने के लिए अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के अध्यक्ष का पद अत्यंत महत्वपूर्ण है।

1. समाज का नेतृत्व:

अध्यक्ष बिश्नोई समाज के सर्वोच्च नेता के रूप में कार्य करता है। वह समाज की एकजुटता बनाए रखने और सभी सदस्यों को एक दिशा में प्रेरित करने की जिम्मेदारी निभाता है।

2. पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी भूमिका:

बिश्नोई समाज का पर्यावरण संरक्षण में ऐतिहासिक योगदान रहा है। अध्यक्ष इस धरोहर को बनाए रखते हुए वन्यजीव संरक्षण, पेड़-पौधों की रक्षा और पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाने वाले अभियानों का नेतृत्व करता है।

3. निर्णय क्षमता और नीतियों का निर्माण:

अध्यक्ष की भूमिका नीतियां तय करने, योजनाओं को लागू करने और समाज की समृद्धि के लिए निर्णय लेने में अहम होती है। यह पद समाज की दिशा निर्धारित करने के लिए उत्तरदायी होता है।

4. परंपराओं और धर्म का संरक्षण:

बिश्नोई धर्म की शिक्षाओं और परंपराओं को बनाए रखने की जिम्मेदारी अध्यक्ष पर होती है। धार्मिक आयोजनों और सांस्कृतिक गतिविधियों के सफल संचालन में उनकी भूमिका अहम है।

5. शिक्षा और सामाजिक उत्थान:

अध्यक्ष समाज के युवाओं को शिक्षित और जागरूक बनाने के लिए पहल करता है। कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए योजनाएं तैयार करना और उन्हें मुख्यधारा में जोड़ना भी इसकी प्राथमिकता होती है।

6. अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व:

अध्यक्ष बिश्नोई समाज के विचारों और संदेश को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने का कार्य करता है। यह समाज को वैश्विक पहचान दिलाने का माध्यम बनता है।

7. समाज में एकता और सामंजस्य:

विभिन्न क्षेत्रों और विचारधाराओं को एक सूत्र में पिरोकर समाज में समरसता और शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी भी अध्यक्ष की होती है।

8. सामाजिक चुनौतियों का समाधान:

चाहे वह पर्यावरणीय संकट हो, सामाजिक असमानता हो, या युवाओं के सामने आने वाली समस्याएं हों, अध्यक्ष समाज को इन चुनौतियों से उबारने के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है।

निष्कर्ष:

अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा का अध्यक्ष पद समाज के मूल्यों और परंपराओं को संरक्षित रखने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत नींव तैयार करने में निर्णायक भूमिका निभाता है। यह पद सेवा, समर्पण और नेतृत्व का प्रतीक है।.

कुछ लोग पद को स्वार्थ एवं व्यक्तिगत फायदे के लिए उपयोग करने का प्रयास करते हैं। और समाज में मतभेद पैदा कर राजनीति का चोला पहने हुए व्यवहार करते हैं।

उन्हें समझना चाहिए की अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा को निष्पक्ष दल विहीन एवं राजनीतिक निरपेक्ष रहना चाहिए।

ताकि समाज के सभी राजनीतिक विचारधाराओं के लोग एक मंच पर आकर समाज हित में निर्णय लेने में सक्षम हो सके।

जबकि राजनीतिक व्यक्ति को पद सौंपने पर समाज की दिशा और दशा व्यक्ति के व्यक्तिगत व्यवहार के आधार पर परिवर्तित होती रहती हैं,। The Importance of the Elections of the Akhil Bhartiya Bishnoi Mahasabha

The Importance of the Elections of the Akhil Bhartiya Bishnoi Mahasabha

इसलिए अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा का पद, दिशा एवं दशा के बारे में अगले ब्लॉक में चर्चा करेंगे।

जय जंभेश्वर जय हिंद।। The Importance of the Elections of the Akhil Bhartiya Bishnoi Mahasabha

 

 

 

 

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