Kuldeep bishnoi ka abvm ke sarnkshak pad se istifa

अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा: कुलदीप बिश्नोई ने संरक्षक पद से दिया इस्तीफा

बीकानेर, 8 दिसंबर 2024: अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा (रजि.) के संरक्षक कुलदीप बिश्नोई ने एक भावुक पत्र लिखकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

इस इस्तीफे के पीछे उन्होंने व्यक्तिगत व्यस्तताओं और महासभा को पर्याप्त समय न दे पाने का कारण बताया है।

कुलदीप बिश्नोई ने यह पद करीब 12 वर्षों तक ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से निभाया और इस दौरान बिश्नोई समाज के हितों को लेकर उल्लेखनीय कार्य किए।

 

संरक्षक पद का सफर

 

कुलदीप बिश्नोई को 2011 में स्वर्गीय चौधरी भजनलाल के देहांत के बाद अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा का संरक्षक नियुक्त किया गया था।

यह निर्णय समाज के संत समाज, बुद्धिजीवी और गणमान्य लोगों की सहमति से लिया गया था।

इस पद को संभालने के बाद उन्होंने समाज की सेवा और एकता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए।

 

समाज के लिए किए गए कार्य

 

कुलदीप बिश्नोई ने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमें शामिल हैं:

 

1. धर्मशालाओं का निर्माण: हरिद्वार, गुड़गांव, दिल्ली और जयपुर में धर्मशालाओं का निर्माण करवाकर समाज के तीर्थ यात्रियों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराईं।

 

 

2. समाज के हितों की रक्षा: विष्णुदत्त प्रकरण में अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री से संघर्ष करते हुए सीबीआई जांच शुरू करवाई।

 

 

3. रोजगार के अवसर: समाज के युवाओं को सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में रोजगार दिलाने के लिए प्रयास किए।

 

 

4. ओबीसी में शामिल करवाने का प्रयास: समाज को ओबीसी सूची में शामिल करवाने की प्रक्रिया को अंतिम चरण तक पहुंचाया।

 

 

5. राष्ट्रीय स्तर पर पैरवी: समाज से जुड़े प्रतिक्षित लोगों को टिकट दिलवाने के लिए कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेताओं के समक्ष मजबूती से पक्ष रखा।

 

 

6. समाज की आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया: उन्होंने राष्ट्रपति के समक्ष भी समाज के मुद्दों को मजबूती से रखा।

 

 

 

इस्तीफे का कारण

 

कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि वह अब महासभा को सक्रिय रूप से समय नहीं दे सकते।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उन्हें कभी भी पद की लालसा नहीं रही।

उन्होंने पूर्व में उपमुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री पद तक ठुकरा दिया था, क्योंकि उनके लिए सिद्धांत और जमीर अधिक महत्वपूर्ण रहे।

 

उन्होंने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने महासभा का अध्यक्ष बनने के एक साल बाद ही समय के अभाव के कारण इस्तीफा दे दिया था।

इसी तरह, संरक्षक बनने के तुरंत बाद भी उन्होंने इस्तीफा देने

की पेशकश की थी, जिसे महासभा की कमेटी ने नामंजूर कर दिया था।

 

भविष्य में समाज के लिए प्रतिबद्धता

 

कुलदीप बिश्नोई ने अपने पत्र में यह भी कहा कि वह समाज के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।

उन्होंने विश्वास दिलाया कि जब भी समाज को उनकी आवश्यकता होगी, वह 24 घंटे उपलब्ध रहेंगे।

 

समाज के प्रति आभार

 

अपने इस्तीफे में उन्होंने संत समाज, महासभा के पदाधिकारियों और समस्त बिश्नोई समाज का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने उन्हें इतना प्यार, स्नेह और आशीर्वाद दिया।

उन्होंने कहा कि समाज से उन्हें जो स्नेह मिला है, उसके लिए वह सदैव आभारी रहेंगे।

 

समाज में भावनात्मक लहर

 

कुलदीप बिश्नोई का इस्तीफा बिश्नोई समाज के लिए एक भावनात्मक क्षण बन गया है।

उनके कार्यकाल में किए गए प्रयासों और उपलब्धियों को लेकर समाज में उनके प्रति गहरी कृतज्ञता है।

उनका कहना है कि पद से भले ही वह अलग हो रहे हों, लेकिन समाज के प्रति उनका दायित्व और सेवा की भावना हमेशा बनी रहेगी।

 

कुलदीप बिश्नोई के इस निर्णय ने समाज को आत्मचिंतन का अवसर दिया है और उनके कार्यकाल

को एक प्रेरणादायक सफर के रूप में याद किया जाएगा।

कुलदीप बिश्नोई और अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा: संरक्षक पद की लड़ाई और इस्तीफे तक का सफर

 

अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के संरक्षक पद को लेकर हालिया विवाद और कुलदीप बिश्नोई का इस्तीफा बिश्नोई समाज में चर्चा का प्रमुख विषय बन गया है।

यह घटनाक्रम न केवल महासभा की आंतरिक राजनीति को उजागर करता है, बल्कि समाज की संरचनात्मक एकता पर भी सवाल खड़े करता है।

कुलदीप बिश्नोई का इस्तीफा उनकी लंबे समय से चली आ रही लड़ाई का एक ऐसा परिणाम है, जिसमें उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे।

 

संरक्षक पद से बर्खास्तगी की पृष्ठभूमि

 

कुलदीप बिश्नोई को पहले महासभा के अध्यक्ष देवेंद्र बुढ़िया ने संरक्षक पद से बर्खास्त कर दिया था।

इस फैसले ने बिश्नोई समाज में आंतरिक कलह को जन्म दिया। बिश्नोई समाज के लिए यह एक अप्रत्याशित घटना थी।,

क्योंकि कुलदीप बिश्नोई को उनके प्रभावशाली योगदान और समाज के लिए किए गए कार्यों के लिए जाना जाता है।

 

शपथ पत्र का विवाद

 

बर्खास्तगी के बाद कुलदीप बिश्नोई ने महासभा के 21 में से 14 सदस्यों के साथ मिलकर एक शपथ पत्र पेश किया, जिसमें उन्होंने देवेंद्र बुढ़िया पर मनमानी और गलत तरीके से संरक्षक पद से हटाने का आरोप लगाया।

 

इस शपथ पत्र का दावा था कि यह महासभा के सदस्यों का सर्वसम्मत निर्णय है और बर्खास्तगी का फैसला नियमों के विपरीत था।

 

हालांकि, यह शपथ पत्र महासभा के मुक्तिधाम मुकाम कार्यालय (बीकानेर) से जारी किया गया था, जबकि महासभा का आधिकारिक मुख्यालय फरीदाबाद, उत्तर प्रदेश के अंतर्गत आता है।

 

 

कानूनी जटिलताएं और स्थिति कमजोर

 

मुकाम कार्यालय के माध्यम से शपथ पत्र पेश करना कुलदीप बिश्नोई के पक्ष में नहीं गया। फरीदाबाद रजिस्ट्रेशन कार्यालय में यह तर्क कमजोर पड़ गया, क्योंकि महासभा का मुख्य कार्यालय आधिकारिक रूप से फरीदाबाद में स्थित है।

जबकि यह पत्र बीकानेर रजिस्टार कार्यालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।

 

इस तकनीकी और कानूनी कमी ने उनके दावे को कमजोर कर दिया।

 

कानूनी जटिलताओं और महासभा के आंतरिक विरोध के चलते कुलदीप बिश्नोई के लिए इस विवाद में आगे बढ़ना कठिन हो गया।

 

 

इस्तीफे का निर्णय

 

जब विवाद के समाधान का कोई ठोस रास्ता नहीं बचा और कानूनी लड़ाई में पक्ष कमजोर पड़ने लगा, तो कुलदीप बिश्नोई ने संरक्षक पद से इस्तीफा देना बेहतर समझा।

 

यह कदम उनके लिए एक मजबूरी के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि विवाद ने उनकी भूमिका को सवालों के घेरे में ला दिया था।

 

इस्तीफे के साथ ही उन्होंने अपने पत्र में इस बात पर जोर दिया कि वह पद की लालसा के बिना हमेशा समाज की सेवा करते रहेंगे।

 

 

कुलदीप बिश्नोई और महासभा की लड़ाई: प्रमुख बिंदु

 

1. समाज में शक्ति संतुलन का संघर्ष: देवेंद्र बुढ़िया और कुलदीप बिश्नोई के बीच यह लड़ाई सिर्फ संरक्षक पद की नहीं, बल्कि महासभा के नेतृत्व और अधिकार को लेकर शक्ति संतुलन का मुद्दा बन गई।

 

 

2. संविधान और अधिकार क्षेत्र का विवाद: महासभा के मुक्तिधाम मुकाम कार्यालय और फरीदाबाद मुख्यालय के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर भ्रम स्थिति को और उलझा गया।

 

 

3. समाज में बंटवारे का खतरा: इस विवाद ने बिश्नोई समाज के अंदर गुटबाजी को बढ़ावा दिया, जिससे समाज की एकता और उद्देश्य को नुकसान पहुंचा।

 

 

 

इस्तीफा: लड़ाई का अंत या नई शुरुआत?

 

कुलदीप बिश्नोई का इस्तीफा इस विवाद का अंत माना जा सकता है, लेकिन इससे समाज के भीतर कई अनुत्तरित सवाल खड़े हो गए हैं।

 

क्या महासभा की संरचना और नेतृत्व प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है?

 

क्या यह विवाद समाज की एकता को कमजोर करेगा या इसे एक नई दिशा देगा?

 

 

समाज के लिए संदेश

 

इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि नेतृत्व के संघर्ष और आंतरिक कलह से समाज का उद्देश्य कमजोर होता है।

कुलदीप बिश्नोई ने इस्तीफे के माध्यम से यह संकेत दिया कि व्यक्तिगत पदों से ऊपर समाज की सेवा और एकता होनी चाहिए।

 

कुलदीप बिश्नोई ने अपने पत्र में यह भी कहा कि वह पद छोड़ने के बाद भी समाज के लिए उपलब्ध रहेंगे।

उनका यह निर्णय समाज के लिए एक संदेश है कि नेतृत्व का अर्थ केवल पद प्राप्त करना नहीं, बल्कि समाज की सेवा करना है।

 

निष्कर्ष

 

कुलदीप बिश्नोई और अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के बीच हुआ यह विवाद समाज के लिए एक कठिन समय रहा है।

हालांकि, उनका इस्तीफा संघर्ष का अंत प्रतीत होता है, लेकिन इससे जुड़े सवाल और चुनौतियां समाज को आत्ममंथन का अवसर प्रदान करती हैं। यह जरूरी है कि बिश्नोई समाज इस

विवाद से सबक लेते हुए अपनी एकता और विकास पर ध्यान केंद्रित करे।

 

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